मचैल माता सम्पूर्ण कथा ( भाग-2 )/ Machail Mata History

 

Machail mata history hindi

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः


            भाग-2  ( Part-2 )



तो सभी प्यारे भगतों को एक बार फिर से मेरा नमस्कार और जय माता दी । तो आज हम फिर से आपके समक्ष माँ मचैल वाली की सम्पूर्ण कथा का भाग-2 लेकर आएं है तो चालो शुरू करते कथा का दूसरा भाग।

एक दिन की बात है कि कन्या से बातें करते-करते बुढ़िया को स्मर्ण हुआ कि आटा भी पीसना है और पानी भी भरना है इस पर कन्या बोल पड़ी आटा मैं पीस देती हूँ आप पानी भरना क्योंकि आज में भी भोजन यहाँ आप के संग करूंगी। जब तक घुमरों पानी| लेकर वापिस पहुँची आटे के ढेर को देख असमंजस में पड़ गई कि इतनी शीग्रता से कन्या ने सारे का सारा अनाज हथ चक्की पर कैसे पीस डाला। इतना कुछ चमत्कार देखने पर भी घुमरो की बुद्धि महामाया को नहीं पहचान पाई। इतने में बुढ़िया ने कहा कि मैं दही और माखन बिलोती हूँ। इस पर कन्या झट से बोली कि माखन मैं निकालती हूँ आप रोटी पकाओ । घुमरों अभी आटा ही गूंध रही थी कि कन्या ने माखन बिलोकर बुढ़िया के सामने रख दिया अब घुमरो को सूझा कि यह कन्या कोई साधारण कन्या नहीं है अवश्य कोई दिव्य ज्योति मेरे घर पधारी है। कितनी भागशाली थी घुमरो जिसे सर्वशक्ति जगजननी भवानी का सानिध्य प्राप्त हुआ था। घुमरो तुरंत माता के चरणों में नतमस्तक हो अपनी भूल के लिए क्षमायाचना करने लगी। तभी माँ ने उसे अपने दिव्य दर्शनों द्वारा उस के मन को शान्ति प्रदान की तथा उसे अपने गले लगाया और कहा कि वर मांगो। घुमरो ने याचना की कि हे माँ ऐसा वर दो कि जनता को विश्वास हो जाए कि जग कल्याणी यहाँ मिंधल मट्टास घुमरो के घर प्रकट हुई है।


माँ ने कहा कि घुमरो इस गाँव में आज के बाद मात्र एक ही बैल द्वारा हल जुतेगा जो स्थानीय एवं अन्य लोगों के लिए अजूबा होगा। इस के साथ ही आधी चक्की आटा पीसा करेगी। ठीक तब से यह प्रथा निरंतर जारी है। आज भी हल में एक ही बैल जोता जाता है यदि दूसरा जोड़ा जाये तो वे मर जाता है ऐसी स्थानीय लोगो की मानता एवं धारणा है और ऐसा मात्र पांगी क्षेत्र में है अन्य जगहों पे नहीं। यह अभिशाप माता ने इसलिए दिया कि गाँव वाले घुमरो की बात पर विश्वास नहीं कर रहे थे और माँ की शक्ति से भी मुनकर थे कोई कहता था मुझे खेत में हल जोतना है तो कोई यह कह कर टाल देता था कि चर्खा कातना है।

माता रानी का घुमरो को आशीर्वाद


माँ के साक्षात दर्शन उपरांत घुमरो ने अपना सर्वस्व माँ के चरणों में अर्पण कर दिया भगवती ने कहा कि मैं तेरी निष्काम भक्ति पर प्रसन्न हूँ तथा वर देती हूँ कि मेरी पूजा के साथ-साथ मेरे भक्त तेरा भी नाम स्मर्ण करेंगे और तेरे बच्चों का दुःख भक्त भी मनाएंगे तथा देव पूजा दौरान सर्वप्रथम महात्मा राग का प्रयोग करेंगे यह प्रथा आज भी पांगी एवं उस से जुड़े पाडर क्षेत्र में माजूद है। इसका प्रमाण माता के चेलों द्वारा चौकी देते समय मिलता है अर्थात चौकी ( माता का प्रवेश) लेते वक्त चेला रोता है तत्पश्चात विस्तार की बात चेले के मुखार बिंद से निकलती है ।


इस प्रकार माँ भगवती के साथ-साथ श्री घूमरो देवी का नाम भी अमर हो गया। आज घुमरो का पुराना घर न केवल एक मन्दिर है अपितु तीर्थ तुल्य है जहाँ दूर-दूर से माता के भक्त माता एवं घुमरो के प्रति अपनी श्रन्धा के प्रदर्शन निमित पहुँचते हैं इस प्रकार मिंधल हिमाचल का नाम प्रसिद्ध हुआ और इसकी मान्यता दिन-प्रतिदिन लोकाप्रेय होती जा रही हैं।

मिंधल के ऐतिहासिक स्थल तथा भगवती का आद्य स्थान होने का प्रमाण स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार द्वारा निर्मित एवं प्रसारित टी. वी. सीरियल ओम नमः शिवाये में भी उपरित है। जिस से इस स्थान संबंधी जानकारी एवं मान्यता सत्य सिद्ध होती है यहाँ मिंधल भट्टास से माँ भगवती चण्डिका, शिला रूप में ही जग विख्यात नीलम खान के निकट एक मनोरम तथा प्रकृतिक आंचल में बसे मचेल गाँव के मध्य प्रकट हुई। यह उस आद्यकाल की बात है जब इस स्थान तक पहुँचना नामुमकिन था। उस समय नीलम घाटी पाडर भी हिमाचल प्रदेश का ही भूभाग थी। यही कारण है कि पाडर क्षेत्र के निवासी भी ईश्वर भक्त, और सादगी पसंद मां के उपासक हैं और इन के रस्म व रिवाज हिमाचल से मेल खाते हैं।


माँ भवानी ने तो अपनी ओर से एक रमणीक दुर्गम एवं दूरस्थ स्थान चुना था पर उसके सेवकों ने अपनी दूढ आस्था का प्रदर्शन कर दुर्गम पहाड़ी मार्गों पर से होते हुए मों को मचेल में खोज लिया और इस प्रकार भक्तों का यहाँ आना सदियों पूर्व आरम्भ हुआ। यह एक गुमनाम एवं उपेक्षित क्षेत्र रहा है परंतु माँ भवानी की कृपा एवं मचेल यात्रा कारण नीलम घाटी पाडर न केवल जम्मू-कश्मीर राज्य अपितु समस्त भारत में प्रसिद्ध हुआ। इस बात का प्रमाण है वे यात्री जो देश के कोने-कोने से चल कर मचेल पहुँच माँ के चरणों में नतमस्तक हो असीम आत्म संतुष्टी पाते हैं तथा अपनी झोली भरकर घर को लोटते हैं।


श्री चण्डिका भवानी के मचेल पाडर प्रकट होने संबंधी कुछ किमवदन्तियों नुसार कहा जाता है कि भूतकाल में पाडर का कोई सज्जन अपने किसी कार्य वश हिमाचल अर्थात पांगी क्षेत्र गया हुआ था और रात्रि विश्रामार्थ वे मिंधल मन्दिर प्रांगण में चला गया। वहाँ मन्दिर में माँ चण्डिका भवानी के दर्शन कर मुग्ध हो गया तथा उस के मन में विचार जागा कि माँ भवानी कभी हमारे गाँव में भी प्रकट होती तो कितनी अच्छी बात थी। यहाँ रोज आना तो असम्भव है।


उस सज्जन परूष ने अपने मन ही मन माता से अर्दास की कि हे माँ मैं एक निर्धन व्यक्ति हूँ तथा मेरे क्षेत्र पाडर के निवासी भी आप के दर्शनार्थ मिंधल हिमाचल नहीं आ सकते क्योंकि हमारा जन्म स्थान यहाँ से बहुत दूर हैं। बस इसी सोच दौरान उसे निद्रा ने घेर लिया।


उसे क्या मालूम था कि भगवती माँ ने उस की अर्दास स्वीकार कर उसे स्वप्न में दर्शन प्रदान करने हैं माँ ने उससे कहा कि हे सज्जन परूष मैं तुम्हारी श्रद्धा-आस्था एवं परोपकार की भावना से प्रसन्न हुई और तुम्हारे साथ तुम्हारे गाँव चलना चाहती हूँ पर इस के लिए तुम्हें मेरी कोई निशानी यहाँ से अपने गांव ले जानी होगी माँ स्वंय अलोप हो गई।



              To be continued........

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