मचैल माता की सम्पूर्ण कथा । Machail Mata History

   

History of Machail Mata

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः


            भाग-1  ( Part-1)

     

   सबसे पहले माँ मचैल वाली के सभी प्यारे भगतों को जय माता दी। तो प्यारे दोस्तों आज हम आपके समक्ष माँ जग जननी चण्डी माँ की सम्पूर्ण  कथा प्रस्तुत कर रहे हैं।

तो चैलिये हम आपको लेकर चलते है अतीत में जहाँ आप माँ चण्डी की सम्पूर्ण कथा सुनेगे। 


जगजननी आद्य भवानी, सर्वशक्ति मां परमेश्वरी जब जगकल्याण एवं माया के खेल खेलने ब्रह्मा जी के मानसिक पुत्र हिमालय क्षेत्र के राजा दक्ष प्रजापति एवं उस की निसंतान रानी प्रसूति द्वारा संतान इच्छा से घोर तपस्या पश्चात रानी प्रसूति के गर्भ में प्रवेश कर धरा पर मा पार्वती के रूप में अवतरित हुई जैसा कि प्राचीन्तम देवी महा भागवत पुराण के शक्ति पीठ अंक में उल्लेख मिलता है, तो कन्या रूप में महामाया ने अपनी माया से राजा एवं रानी को मोहपाश में बांध लिया।


किशोर अवस्था से ही इस दिव्य बालिका ने कालों के काल महा काल भगवान भोले नाथ को अपने पति परमेश्वर के रूप में मन ही मन सुविकार कर स्तुति प्रारम्भ कर दी तथा सदा ही उन के ध्यान में लीन रहने लगीं ।


मां भवानी ने जैसे ही युवा अवस्था में कदम रखा तो राजा एवं रानी को उस के योग्य वर की चिंता सताने लगी। उन्हें क्या मालूम था कि उन की कन्या के रूप में सर्वशक्ति जगजननी ने उन के घर में कदम रखे हैं तथा दुष्टों के संहार के लिए अवतरित हुई हैं। माता-पिता के लाख समझाने पर भी जब माता पार्वती ने जटा धारी बाबा से ब्याह रचाने की जिद की तो राजा-रानी को बेटी के हट के समक्ष झुकना ही पड़ा।


ब्याह के कुछ समय बाद राजा दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ रचाने पर दामाद को निमंत्रण प्रदान न करने पर भोलेनाथ के लाख समझाने बावजूद भी मां पार्वती अपने मायके पिता के पास पहुंची और अपने पति को आदर सहित बुलाने का आग्रह पिता से किया। पिता को अपनी ज़िद पर अडिग देख मां पार्वती यज्ञ के हवन कुण्ड में कूद गई और सती रूप में सशक्त एवं देदीप्यमान बन गई। इधर भोले नाथ ने उग्ररूप धारण कर माता पार्वती के धधकते शरीर संग आकाश गमन प्रारम्भ किया तो जहां कहीं जिस स्थान पर भी सती का कोई अंग गिरा वे स्थल पवित्र धाम कहलाया उसी महाशक्ति एवं माता परमेश्वरी की माया और लीला का वर्णन करने का इस पुस्तक में यह तुछ लेखक प्रयास करने जा रहा है मचेल माता एवं माता चण्डी की शक्ति के माध्यम से । संयोग का ही विषय है कि मिंघल एवं मचेल जिसे उस सर्वशक्ति ने अपनी क्रीड़ा स्थल बनाया, दोनो ही सीन हिमाचल अर्थात हिमालय के ही भूभाग है जहां किसी जमाने में राजा दक्ष प्रजापति राज करते थे।

इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि हजारों वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश क्षेत्रांतर्गत मिंधल गांव में एक साधारण बुढ़िया रहती थी कुछ लोग इसे घुमरो की संज्ञा देते हैं जबकि कुछ लोग इसे धूंघती नाम से पुकारते थे।

घुमरो बुढ़िया अथवा माता का पिंडी स्वरुप का प्रकट होना


महामाई सर्वशक्ति चण्डिका भवानी बुढ़िया की सादगी एवं श्रद्धा भाव देख उस पर दयाल हुई तथा उस के कश्ट मिटाने के आशय से उस के घर चूल्हे के मध्य शिला (पिण्डी) रूप में प्रकट हुई। पर घुमरो अर्थात धूंधती बुदिया का दुर्भागय कि वे महामाई की माया को समझ न पाई अर्थात माँ का वरदान उस की अपनी ही दुर्बुद्धि कारण अभिशाप बन गया बाद में जन घुमरो को समझ आई तो काफी देर हो गई थी पर फिर भी करूणा मई ने उस पर करूणा बरसाई प्रथम उसके भीतर अपनी सत्ता एवं शक्ति का एहसास जागृत किया अपनी क्रीड़ाओं द्वारा।


हुआ यूँ कि जब भवानी ने बुढ़िया के चूल्हे एवं घर में प्रवेश कर लिया तथा घुमरों को चूल्हे के मध्य शिला के होते भोजन पकाने में दिक्कत आने लगी तो उस ने शिला को तोड़ डाला। जब चूल्हे के मध्य शिला के प्रकट होने और फिर टूटने का क्रम जारी रहा तो माँ भवानी ने एक दिन बुढ़िया को स्वपन में कहा कि यह स्थान अर्थात अपना घर मुझे प्रदान कर दे पर घूमती बुढ़िया की बुद्धि ने काम नहीं किया और वे शिला को मिट्टी डाल कर दबाने का यत्न करती तो शिला फिर उमर आती।


इस घटना का वृत्तांत जब बुढ़िया ने अपने बेटों एवं पुत्र वधुओं को सुनाया तो उन्होंने बुढ़िया की बातों को घंभीरता से नही लिया अर्थात अनसुनी कर दी। जब गाँव की महिलाओं को बताया तो उन्होंने कहा कि हमें चरखा कातना है तेरी बातें सुनने के लिए नहीं हैं। जब गाँव के किसानों को सुनाने का साहस किया तो वे बोले हमें खेतों में हल जोतना है अर्थात घुमरों की बात पर न तो किसी को विश्वास होता था और न ही उस की बात कोई सुनना चाहता था।



छः दिन ऐसे ही बीत जाने पश्चात जब घुमरों न मानी और शिला को टुकड़े करने की मूर्खता करती रही तब माता का अभिशाप प्रारम्भ हुआ अर्थात चण्डी ने क्रोधित हो काली रूप धारण कर बुढ़िया के पुत्रों का संहार आरम्भ कर दिया। अंततः एक के बाद एक जब घुमरों के छ: पुत्र मर गए तो वे शिला के निकट जाकर रोने लगी और क्षमा याचना के साथ कहने लगी कि हे माँ मुझ पर दया करो। मेरा सर्वनाश हो गया।


बुढिया के पश्चाताप पर तथा यह स्वीकार करने पर कि माँ मुझ से गलती हो गई मैं मूर्ख आप की माया को समझ न सकी। अब जैसा कहो गी माँ मैं वैसा ही करूगी तो माँ की ममता जाग उठी । भवानी ने उसे स्वपन में कहा कि अपने रसोई घर को मेरा मन्दिर बना दो। बुढ़िया ने प्रातः रसोई घर को गोबर और मिटी से पोत कर वहाँ मैया की तस्वीर रख तन-मन से माँ की सेवा में रत हो गई पर ज्यों ही उसे अपने पुत्रों का ध्यान आता वे रोती-बिलखती बेसुद्ध हो जाती। घुमरो की बेसुद्ध दशा को निरख महारानी चण्डिका भवानी को दया आई और वे कन्या रूप बना उस के समीप जाकर उसे सांतवना देती और सहायता करती।


घुमरो कन्या को अपने पास पाकर अति प्रसन्न रहती तथा उसे प्रतिदिन आने को कहती उसे क्या मालूम कि माँ भवानी स्वयं उस के सम्पर्क में हैं। एक दिन की बात है कि कन्या से बातें ...........

              To be Continued…...

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