MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा || भाग-2 (Part-3)

 

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MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा || भाग-2 (Part-3)

यह सर्वशक्ति चण्डी महारानी का आशीर्वाद है जो लोग इस अतिआधुनिक एवं भौतिक युग में धर्मोन्मुख है अन्य था इस ओर सोचने का समय आज के मानव में कहाँ?


बस अड्डे से लेकर गर्लज़ हायर सकैंड्री स्कूल तक की सड़क एवं बाजार को अभिनन्दन द्वारों तथा झंडियों से सजाया होता है किश्तवाड़ निवासी विशेष कर युवा वर्ग यात्रा के अभिनन्दन के लिए बस अड्डे के भी आगे चले आते हैं तथा माँ भवानी के जयकारों एक गुण-गान के माध्यम से समूची यात्रा की अगवाई करते स्कूल प्रांगण तक भजन गाते एवं धार्मिक नारे लगाते यात्रा एवं छड़ी मुबारिक क बड़े आदर मान सहित सांयकाल समय स्कूल प्रांगण के खुले मैदान म विराजमान करते हैं। यहां पर धार्मिक प्रवचनों के आशय से एक छोट सा स्टेज बनाया जाता है जहां से यहां के विद्वान एवं पण्डित औ धार्मिक नेता मां के गुणों का बखान और मचेल यात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हैं तथा इस अवसर पर उपस्थित स्थानीय जनता के धर्म भावना को और बल प्रदान करते हैं।


यात्रियों को स्कूल के कमरों तथा गलियारों में बिठाया जाता। जब कि कुछ यात्री यहां के मन्दिरों और अपने संगे संबधियों ए परिचित सज्जनों के घरों में प्रवेश पाते हैं। दानी सज्जनों तथा मचेल यात्रा प्रबंधन, सर्वशक्ति सेवक संस्था की ओर से यहां लंगर क आयोजन किया जाता है जबकि पवित्र त्रिशूल एवं श्री ठाकुर कुलबीसिंह जम्वाल रात को स्कूल के साथ ही आबाद माता के एक सेवक श्री नेक राम के घर पर ठहरते हैं। यहां पावन त्रिशूल की विधिवत पूजा उपरांत माँ की आरती उतारी जाती है और रात भर भजन-र्कीतन का कार्य क्रम जारी रहता हैं।


लंगर के अतिरिक्त, यात्रियों को खान-पान की सुविधा उपलब्ध कराने के आशय से यहां किश्तवाड़ के स्वयं सेवी संगठनों तथा अन्य दानी जनों की ओर से हल्वा-पूड़ी, चन्ने आदि के स्टाल लगाए जाते हैं ताकि प्रत्येक यात्री को प्रसाद उपलब्ध हो अर्थात कोई यात्री भूखा न रहे। मचेल यात्रा अपने रूप में एक अनोखी और विचित्र यात्रा है। यात्रा दौरान प्रत्येक प्रबंध अनोखा तथा अभिनन्दन निराला होता है जो कही किसी अन्य यात्रा दौरान अनुभव नहीं हो पाता।


मचेल यात्रा की लोक प्रियता एवं महत्व का अनुमान इस तथ्य से सुलभ हो जाएगा कि भद्रवाह से किश्तवाड़ तक का सफर मात्र तीन घंटे का है पर मचेल यात्रा जो प्रातः सात बजे अपने आधार शिवर चिनोत से प्रस्थान कर सांय के सात बजे किश्तवाड़ पहुंचती है, कारण मार्ग में श्रद्धालुओं द्वारा अभिनन्दन तथा प्रसाद वितरण और पावन छड़ी की पूजा अर्चना आदि-आदि यहां यह वर्णन करना भी आवश्यक है कि चिनोत भद्रवाह से लेकर मचेल धाम तक मार्ग में स्थानीय लोग खाद्य पदार्थ प्रस्तुत कर यात्रियों का अभिनन्दन एवं सेवा करते हैं। माता के भजनों 'मौजा ही मौजां' बोल मचेल यात्रा दौरान चरितार्थ होते हैं जहां वास्तव में ही खाने पीने की मौजा ही मौजा हैं।


अब किश्तवाड़ की बात चली है तो इस क्षेत्र का परिचय भी देना जरूरी है। किश्तवाड़ का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। यहां विगत काल में बहुत सारी लड़ाइयाँ लड़ी गई हैं। विशेष कर मुगलों के दौर में जभी तो यहां एक स्थान मुगल मैदान के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस के अलावा किश्तवाड़ नगर से थोड़ी ही दूरी पर परि महल नामक स्थान आज भी मौजूद है जहां दंत कथानुसार परियाँ आज इस युग में भी वास करती हैं।

   
        

इतना ही नहीं किश्तवाड़ नगर के चरण पखारता हुआ चन्द्र भागा एवं मोड़ी स्वधर पावन नदियों का भण्डार कूट के पास सुन्दर संगम अति मोहक दृष्य प्रस्तुत करता हैं। साथ में किश्तवाड़ को बड़े पन बिजली प्रोजेक्ट डूल हस्ती का गौरव भी प्राप्त है। यहां के धार्मिक स्थल तथा पीर-फकीर भी प्रसिद्ध रहे हैं। सब से आकर्षक उपयोगी किश्तवाड़ का मैदान है जिसे चोगान नाम से जाना जाता है अब आबादी बढ़ने कारण सुकड़ता जा रहा है पर फिर भी इसकी सुन्दरता एवं उपयोगिता में कमी नहीं है। इस चोगान के चारों ओर सर्म्युलर रोड बनी है। चोगान के निचले भाग में हवाई अड्डा तथा उस के साथ में सरकूठ नामक एक लघू झील है। यह भी सुकड़ रही है आस-पास आबादी के अधिकरण कारण । इस झील के किनारे एक शिव मन्दिर भी शोभायमान है और यही स्थान श्री सरथल माता यात्रा का आधार शिविर कहलाता हैं। किश्तवाड़ के बारे में एक पुरानी कहावत है कि किश्तवाड़ कष्ट का भाण्डा-दिन का भूखा रात का ठाण्डा पर वे जमाना गुज़र गया आज किश्तवाड़ एक फास्ट डिवेल्पिंग नगर है तथा क्षेत्र का मशहूर तजारती मर्कज । यहां की चहल-पहल किसी बड़े शहर से कम नहीं। किश्तवाड़ के एक ओर मड़वा वाडवन तो दूसरी ओर से नीलम घाटी पाडर जल्वा अफरोज है। स्वयं किश्तवाड़ नगर चारों ओर ऊंचे पवर्तों से घिरी एक सुन्दर घाटी हैं ।


किश्तवाड़ का पुरातन नाम लोहित मण्डल है। इसका प्रमाण आज भी वहां मौजूद है क्यों चौगान से नीचे वाले क्षेत्र एवं गांवों को आज वर्तमान में भी मण्डल संबोधन प्राप्त है। किश्तवाड़ को लोग केसर प्रदेश के नाम से भी जानते हैं और किश्तवाड़ का केसर उतम केसर है। यहां की केसर खेती मशहूर है।


किमवदन्तीनुसार किश्तवाड़ में भगवान शंकर का एक ऐसा शिवलिंग मौजूद था कि जब भी कोई व्यक्ति इस लिंग में अपनी सूरत देखता तो उसे अपने पूर्वजन्म का ज्ञान हो जाता था। सुना है कि इस अनूठे शिवलिंग को बसोहली का राजा ले गया।


मचेल यात्रा के दूसरे दिन नीलम घाटी पाडर की ओर उन्मुख होती हुई यात्रा वस्सर कुलीद शिव मन्दिर प्रांगण में छड़ी अभिनन्दन होता है। यहां पर भी स्थानीय लोग मन्दिर प्रांगण में धार्मिक प्रवचनों के मध्य यात्रियों को प्रसाद रूप में हलवा पूड़ी तथा चने प्रस्तुत कर माता प्रति अपनी लगन एवं श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। किश्तवाड़ से प्रस्थान समय शोभा यात्रा वस्सर शिव मन्दिर तक पैदल चलती है। यहां से यात्रा वाहनों में खरी खासी अर्थात 40/50 बसों की बढ़ोतरी होती है क्योंकि तहसील किश्तवाड़ के लगभग सभी क्षेत्रों से इच्छुक व्यक्ति यात्रा गमन के आशय से किश्तवाड़ एकत्र हुए होते हैं। किश्तवाड़ से प्रस्थान पश्चात डूल सुन्हार-गवाड़ी एवं गल्हार स्थानों पर स्थानीय लोग अपने श्रद्धासुमन आर्पित करते हैं तथा कहीं-कहीं पर ग्रेफ के कर्मचारी भी इस यात्रा का अभिनन्दन कर यात्रियों की सेवा में शर्बत इत्यादि प्रस्तुत कर माता प्रति अपनी श्रद्धा का आभास कराते हैं।

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