मचेल माता के मन्दिर तथा स्थान | Machail Mata Temple

  

Machail Mata Temple

 मचेल माता के मन्दिर तथा स्थान


श्री चण्डी माता का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मन्दिर समुद्र तल से लगभग बारह हजार फुट की ऊंचाई पर श्री थल मचेल गांव में सुशोभित है। पहाड़ी शैली वाला लकड़ी निर्मित मचेलनी का यह सुन्दर एवं नाग आकृति वाला अपनी प्रकार का प्रथम मन्दिर है जो जम्मू व कश्मीर राज्य में अन्यत्र कहीं किसी भी स्थान पर दृष्टीगत नहीं है। राज्य क्या अपितु समस्त भारत में इस शैली का मन्दिर कहीं उपलब्ध नहीं मासिवाए हिमाचल प्रदेश के । हिमाचल में भी सभी जगहों पे इस पहाड़ी एवं प्राचीन शैली के मन्दिर उपलब्ध नहीं है। पर फिर भी ऐसे मन्दिर वहां कहीं न कहीं दृष्टिगत हो जाते हैं | नीलम घाटी पाडर भी प्राचीन काल में हिमाचल प्रदेश का ही एक भू भाग था। अतः यह स्वभाविक ही था कि यहां भी इस शैली के ही मन्दिर निर्मित किए गए थे जिनका चलन पाडर क्षेत्र में निरंतर जारी रहा।


इस पहाड़ी शैली मन्दिर के लिए प्रथम तो भूमि पर दो-तीन फुट ऊंचा एक थड़ा चबूतरा पत्थरों एवं मिट्टी की मराई से तैयार किया । जाता है फिर उसके ऊपर लकड़ी के लगभग डेढ़ फुट चौड़े चार बीम आधार रूप में रख चार कोनों पर चार-पांच फुट लकड़ी के टुकड़ों की है चिनाई कर ऊपर से फिर वहीं ढेढ़ फुट चौड़ाई के चार बीम डाल कर क कैंची अर्थात त्रिकूणी आकार की बीस-पच्चीस फुट की ऊंचाई लेकर शिखर पर एक लम्बे त्रिकूणे आकार वाले लकड़ी बीम द्वारा बंद किया जाता है तथा इसके दोनों सिरों पर लकड़ी अथवा धातू के बने दो शेर कीलो द्वारा जड़े जाते हैं तथा दो सायडों को लकड़ी के फटों से ढक दिया जाता है। आज कल तो लकड़ी के स्थान पर टीन प्रयोग में लाई : जाती है। मन्दिर के सन्मुख वाले भाग को मध्य में एक लकड़ी का : लम्बा खम्बा खड़ा कर उस पर नाग का आकार बनाया जाता है जबकि इस खम्बे की दोनों सायडों पर लकड़ी के साफ फट्टे प्रयोग में लाकर उन में नाना प्रकार के देवी-देवताओं के अकार बनाए जाते हैं तथा उन में रंग भरा जाता है जबकि पीछे वाले भाग को साधारण फटों से बंद कर दिया जाता है। इस प्रकार एक बड़ा गुम्बद खड़ा हो जाता है।

Machail Mata Temple


फिर इस बड़े गुम्बद के मध्य भाग पर उसी प्रकार से पांच अथवा छह फुट चकोर एक कमरा लकड़ी एवं पत्थर व गारे से तैयार किया जाता है और इसके भीतर जाने के लिए एक लघू दरवाज़ा बनाया| जाता है। इस कमरे के भीतर कुल-देवता या फिर देवी-देवता अथवा | भगवान की पत्थर, लकड़ी या फिर पीतल, चांदी, सोने या संगे मर-मर | से निर्मित मूर्ती स्थापित की जाती है। इस कमरे के चारों ओर से टेढ़-दो फुट की जगह खाली रखी जाती है ताकि श्रद्धालु मन्दिर अथवा देवता की परिक्रमा कर सकें । ऐसा होता है पहाड़ी शैली का मन्दिर और इसका आकार । इस शैली के मन्दिर की एक कमी होती है कि इस का र्भगृह अर्थात मूर्ती स्थापना वाला स्थान बहुत छोटा एवं तंग होने कारण श्रद्धालू मन्दिर भीतर बैठकर तसल्ली से पूजा- अर्चना नहीं कर पाते । एक समय में मात्र एक या दो व्यक्ति ही भीतर रह पाते हैं। विशेष कर तीज-त्यौहार तथा अन्य स्थानीय वार्षिक उत्सवों के अवसर पर दर्शन करताओं की भीड़ कारण दिक्तों का सामना करना पड़ता हैं। मचेल स्थित प्राचीन मन्दिर के अलावा मचेलनी मैया का एक आधुनिकतम मन्दिर मचेल यात्रा के आधार शिविर चिनोत भद्रवाह में संस्था की ओर से निर्माणाधीन है अब लगभग तैयार हैं। यह दो मंजला मन्दिर अपनी प्रकार का राज्य में प्रथम मन्दिर होगा जिसे देखने के लिए साधारण जन बड़ी दूर-दूर से पधारें गें, ऐसा विशेषज्ञों का मानना व विश्वास हैं।


चण्डी महारानी के इस मन्दिर के निर्माण पर पांच करोड़ से भी अधिक धन राशि व्यय होने का अनुमान हैं। मन्दिर काम्प्लेक्स में वे सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होगी जो किसी भी बड़े मन्दिर के लिए आवश्यक होती हैं। जैसे यज्ञशाला, सभागार, स्नानगृह, शोचालय भोजनालय आदि-आदि। स्मर्ण रखने वाली बात यह है कि इस विशाल मन्दिर काम्प्लैक्स को मात्र भक्तों एवं श्रद्धालुओं के कार्य सेवा एवं अनुदान द्वारा निर्मित किया जा रहा है । सर्वशक्ति सेवक संस्था द्वारा यह प्रथम मन्दिर भद्रवाह में तामीर किया जा रहा है जिसके लिए भूमि कुछ तो श्री ठाकुर कुलबीर सिंह जी के परिवार द्वारा दान की गई टोर है तथा कुछ भूमि खरीदी भी गई है और तो और महामाई मचेलनी के है।

Machail Mata Temple


इस मन्दिर के लिए मुस्लिम साम्प्रदाय ने भी अपनी भूमि प्रस्तुत की हैं। संस्था मचेल यात्रा मार्ग पर किश्तवाड़ नगर से पहले किय कान्दनी नामक स्थान पर भी एक मन्दिर का निर्माण किया है जो वाहन बनाया मार्ग पर माता सर्थल के ठीक नीचे है । वास्तव में इस मन्दिर का उद्देश्य अधन यही है कि मचेल अग्रसर होते हुए यात्री यहां स्थल माता को नमन - कर आगे बढ़े ताकि माता सर्थल वाली का आर्शीवाद उनके साथ रहे र और वे सकुशल सहर्ष यात्रा करें।


वैसे भी तो चिनोत भद्रवाह में ठाकुर कुलबीर सिंह जी जम्वाल नी के आबाई घर का एक कमरा जहां आज से लग-भग बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व धरती के गर्भ से प्रस्फुटित श्री चण्डी माता की मूर्ती स्थापित की गई है चण्डी मन्दिर कहलाता है । इस मन्दिर की विशेषता में यह  भी शामिल है कि यहां कमरे की दीवारों पर चण्डी माता मचेल यात्रा की पावन छड़ियाँ (त्रिशूल) भी शोभायमान हैं। जिन की आभा व आकृति को देखते ही बनता है । यह पावन त्रिशूल यात्रियों एवं यहाँ पर नतमस्तक होने वाले श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण स्त्रोत हैं।


इस मन्दिर से सेंकड़ों एवं हजारों दीन-दुखियों के कष्टों का निपटारा हुआ है माता के मुख्य सेवक तथा साधक ठाकुर कुलबीर सिंह के माध्यम से जो यहां दिन-रात माता के सेवकों की पीड़ा हरने के कार्य में रत रहते हैं अपना सारा कार्य त्याग माँ की सेवा खातिर उस के श्रद्धालुओं की सेवा में सदालीन रहते हैं। ऐसा दीखता है कि वे गृहस्थी होते हुए भी सन्यासी हैं क्योंकि उन्होंने अपने गृहस्थ का सारा भार सम्भवतः माता के कंधों पर डाल दिया हैं। और तो और, संस्था की ओर से मन्दिरों के शहर जम्मू में भी एक लघु मन्दिर कार्य रत हैं। यहां भी माता मचेलनी का पावन चित्र एवं मूर्ती श्री महालक्ष्मी जी मन्दिर पक्का डंगा के प्रांगण स्थित एक छोटे कमरे में स्थापित है तथा यहाँ प्रातः सायं माता का गुणगान और आरती उतारी जाती है उसके भक्तों द्वारा । सायं काल को यहां लग - भग दो घंटों के लिए माता सेवक तथा सेविकाओं द्वारा संकीर्तन किया जाता है। भक्तों एवं श्रद्धालुओं की श्रद्धा को देख माता ने इस स्थान पर अपनी माया का जाल फैला कर अपनी लीला व चमत्कारों द्वारा सेवकों को निहाल किया है। जभी तो यहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रखी है। धन के स्थान पर धन, अन्न की जगह अन्न और मन यहा एकत्र हो मैया के गुण-गान में व्यस्त दीखते हैं।

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