चण्डी माता का चिनोत भद्रवाह में प्रकटन | Machail Yatra History

        

Chandi mata mandir

चण्डी माता का चिनोत भद्रवाह में प्रकटन

 इतना तो स्पष्ट है कि माता अपने भक्त की लाज रखती है और हर प्रकार से रक्षा भी करती है उसे धन धान्य और यश से मालामाल करती है तथा प्रत्येक इच्छा पूर्ण करती है। तभी तो श्री कुलबीर सिंह एवं उसके गांव का नाम रोशन करने के आशय से माता मूर्ती रूप में सन 1982 सितंबर महीने दौरान चिनोत उनके ग्रह आंगन में प्रकट हुई । प्रकटीकरण दृश्य अनुपम था । इस घटना का पूर्वाभास एवं घोष माता ने यात्रा दौरान मचेल में ही कर दिया था । फल स्वरूप परिणाम हजारोनर-नारी उस दिन चिनोत में एकत्र हो गए माता के प्रकटीकरण दृश्य को देखने।


इस शुभ अवसर पर माता को रिझाने वाले देव रागों की धुन दौरान माता के सेवक द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर भूमि खुदान कार्य जोरों पर था। यहाँ एकत्र सभी श्रद्धालू माँ का जय घोष कर रहे थे तथा उत्सुक कि कब माता प्रकट होगी तथा वे दर्शन कर तृप्त होंगे। जब 5/6 फुट खोदने पर भी माता का कोई चिन्ह दिखाई नहीं दिया तो भक्तों को निराशा उनके चहरों से साफ झलक रहीं थी। पर उसकी महिमा वही जाने । उसके खेल न्यारे हैं।


जब सभी दर्शक खुसर-फुसर कर रहे थे और माता की शक्ति एवं भविष्यवाणी पर सन्देह व्यक्त कर रहे थे तो इसी असना में आंगन की चार दीवारी पर बैठे एक फोजी जो अवकाश बिताने अपने गाँव आया था उसके भीतर माँ का प्रवेश हुआ तथा उस की वाणी से निकला कि क्या तुम सभी इतनी सी बात नहीं समझ सकते पर्दा किए बिना कोई बात हो सकती है। नंगेपन में माता के प्रकट होने की आशा कैसे हो सकती है। वे फौजी अपने बूटों समेत दीवार से नीचे उतरा तथा पास ही पड़े कुछ कम्बल उठा कर गढ़े को ढक दिया। उत्सुकता वश थोड़ी देर बाद जब पर्दा उठाया गया तो भक्तों के अचम्भे एवं हर्ष की सीमा न रहीं । महामाई चण्डिका भवानी मूर्ती रूप में गढ़ के एक कूने में विराजमान थी। बस फिर क्या था भवानी के जयकारों से सारा वातावर्ण एवं आकाश गूंज उठा।


माँ भवानी को विधिवत ठाकुर कुलबीर सिंह जम्वाल के घर एक कमरे में आसीन एवं स्थापित किया गया तब से यह कमरा मन्दिर बन गया जहाँ हजारों श्रद्धालू माँ को नमस्कार कर अपनी इच्छाओं की पूर्ती को साकार करते आए हैं। जब भवानी ने देखा कि सेवकों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है तो अपने परम सेवक कुलबीर सिंह को आदेश दिया कि मेरे मन्दिर निर्माण हेतु भूमि उपलब्ध कराई जाए अतः माँ के आर्शीवाद एवं जम्वाल साहिब के प्रयत्नों कारण चिनोत गाँव में ही उनके घर के नीचे वाली भूमि को माता के मन्दिर निर्माण हेतु चुना गया। ल 14/15 कनाल भूमि पर एक भव्य मन्दिर प्रांगण निर्माण किया गया और तो और मुस्लिम सम्प्रदाय कीएक महिला ने भी मन्दिर निर्माण हेतु अपनी भूमि प्रदान की है। यह चण्डी मन्दिर अपने प्रकार का राज्य में प्रथमआधुनिक मन्दिर है जहाँ प्रत्येक प्रकार की सुविधा श्रद्धालुओं एवं यात्रियों को उपलब्ध होगी जैसे हवन कुण्ड, सभागार, शोचालय, स्नानगृह रसोईघर-आदि।


इस अनोखे मन्दिर के निर्माण का कार्य माता के भक्तों द्वारा कारसेवा से प्रारंभ हुआ जिस में बच्चों, बूढ़ों, युवकों एवं महिलाओं ने भाग लिया तथा भविष्य में भी कारसेवा द्वारा योगदान प्रदान करते रहेंगे। मन्दिर निर्माण कार्य माता के प्रथम सेवक, ठाकुर कुलवीर सिंह जम्वाल जी की देख-रेख में हो रहा है। अर्थात जो भी श्रद्धालू किसी प्रकार का योगदान देने का इच्छुक हो जम्वाल साहिब से सम्पर्क करें। इस शुभ कार्य हेतु नगद धन राशि अथवा चैक, बैंक डराफ्ट मन्दिर के खाता क्रमांक 4932 पीएनबी भद्रवाह 8690 पीएनबी नेहरू मार्केट जम्मू अथवा सीघे भद्रवाह जम्बाल नगर जम्वाल साहिब को सों पा जा सकता है अन्य किसी को भी अनुदान ग्रहण करने के आशय से अधिकृत नहीं किया गया है।


भद्रवाह मद्राकली एवं वासुकिनाग का स्थान है इसका प्रमाण वासुकी पुराण है जिस से सिद्ध होता है कि चारों ओर घने हरे जंगलों है। एवं सुन्दर ऊंचे पवर्तों से घिरा भद्रवाह एक ऐतिहासिक नगर है जहाँ नाग सभ्यता अपने अरूज पर थी। आज भी वहाँ नाग कल्चर फल-फूल रहा है क्योंकि श्रीवासकि भद्रवाहियों के कुल देवता है । भद्रवाह की प्रकृतिक सुन्दरता को ध्यान में रखते हुए इसे छोटा कश्मीर का सम्बोधन प्रदान हुआ है।


भद्रवाह नगर से जुड़ा चिनोत स्थान भद्रवाह के बस अड्डे के निकट एवं डाक बंगलों के उपरी ढलान पर बसा एक छोटा सुन्दर गांव भद्रवाह-बसोहली मार्ग पर शोभायमान है । यही वे गांव है जहाँ से गत लग-भग तीन दशकों दौरान धार्मिक क्रांति अर्थात इस अति आधुनिक एवं कलयुग में भक्ति का सूत्र पात हुआ तथा सामान्य जन यहां से प्रेरणा पाकर परमपिता परमेश्वर एवं जगजननी सर्वशक्ति मां चण्डिकेभवानी की भक्ति करने लगे माँ की कृपा से इसी चिनोत को ठाकुर कुलबीर सिंह जैसे परमार्थी व्यक्तित्व को जन्म देने का गौरव भी प्राप्त । है जिस ने अपनी सादगी, निष्ठा एवं कर्मठता द्वारा माँ भवानी का सानिध्य प्राप्त कर जन साधारण की सहायता का वरदान और तरत माँ से प्राप्त किया। धन्य है वे सपूत और उस का सेवाभाव एवं सहन शीलता। श्री जम्वाल, विनम्रता, सच्चाई, इमान्दारी, सेवाभाव की प्रति मूर्ती हैं जो सदा ओरों के मानसिक एवं शारीरिक कष्टों के निवारण हेतु माँ से प्रार्थना एवं अरदास करते रहते हैं । इसी में उनको सुख प्राप्त होता है। यहाँ तक कि अपनी वेतन राशि भी कई बार उन्हों ने माता एवं दीन-दखियों के कार्यों पर व्यय करने में देर नहीं की।


ठाकुर साहिब की सहनशीलता एवं शक्ति का इस तथ्य से ठाकुर सहजता पूर्वक अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रत्येक रविवार के दिन वे बिना जलपान के प्रातः 8 बजे से सायं के 9 बजे तक मन्दिर भीतर बैठ सैंकड़ों दुखियों की सेवा करते रहते हैं। सब की बात प्यार से सुनते रहते हैं तथा उन की समस्याओं के निदानार्थ माता के यंत्र प्रदान कर अर्दास करते हैं कि माँ अपने भक्तों और सेवकों को इन के दुखों से उबारे । वे माता के पुण्य प्रताप से लोगों के मन की बात बूझ लेते हैं तथा उसी नुसार उपाय एवं उपचार भी उन्हें बताते व सुझाते हैं। सच्चे मन एवं निस्वार्थ भाव से माता के चरणों में नतमस्तक होने वाले व्यक्ति के सभी कष्ट स्वतः दूर हो जाते हैं ऐसा प्रत्यक्ष देखा है। तुलसी दास ने ठीक ही कहा कि "जाकी रही भावना जैसी तिन देखी प्रभु मूर्त तैसी" अर्थात जिस के जैसे विचार एवं नीयत होती है मनुष्य भगवान उसे वैसा ही फल देते हैं।


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