MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा || भाग-1 (Part-1)

   

Machail Yatra | मचैल यात्रा

MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा

             

            भाग-1 (Part-1)


तो दोस्तों आज हम माँ मचैल वाली माँ पादर वाली की सम्पूर्ण यात्रा के बारे में जाने गए। कि मचैल यात्रा (Machail Yatra) किस महीने में,किस समय, और कहाँ से प्रारम्भ होती है। तो चलो जानते है मचैल यात्रा के बारे में।


मचेल यात्रा (Machail Yatra) प्रस्थान वास्तव में चण्डी माता मचेल की पावन छड़ी (त्रिशूल) का चिनोत अपने आधार शिविर से धार्मिक उपक्रमों पश्चात विधिवत प्रस्थान का नाम हैं | माता के पावन त्रिशूल का निर्माण बड़े आदरमान एवं श्रद्धा के साथ माता के एक सेवक श्री शिमल जैन डोडा द्वारा किया जाता है। श्री जैन जो जम्मू नगर के मूल निवासी हैं तथा व्योपार के सिलसिले में डोडा सिटी में आबाद हैं प्रतिवर्ष महारानी चण्डी के त्रिशूल का निर्माण कर इसे बड़ी आस्था तथा विश्वास सहित यात्रा की शकल में चण्डी माता चिनोत को भेंट करते हैं। पहले पहल त्रिशूल राज्य के बाहर अर्थात दिल्ली इत्यादि जगों से तैयार करवाया जाता था पर महारानी की कृपा से अब इसे राज्य में ही लकड़ी से तैयार किया जाता है।


 माता का एक सेवक जो मंगा नाम से जानाजाता है बड़े प्यार से लकड़ी को काटकर टुकड़े जोड़-जोड़ त्रिशूल का आकार तैयार करता है। अब इस का डिजायन माता के एक कलाकार सेवक श्री कीर्तन देव द्वारा तैयार किया जाता है तथा श्री मांगा द्वारा लकड़ी काट उसे वास्तविक रूप दिया जाता हैं। वास्तव में एक ही त्रिशूल भीतर कई और त्रिशूल छिपे होते हैं। जब लकडी का त्रिशूल तैयार हो जाता है तो फिर प्रारम्भ होती है राजस्थानी चमक-दमक वाले काँच के टुकड़ों और माता तथा लंगरवीर के मोहक एवं आकर्षक चित्रों से इसकी सजावट । अब यह त्रिशूल चांदी का बनावाया गया हैं। प्रस्थान के समय इसकी चुन्नियों एवं श्रद्धालुओं द्वारा एकत्र सजावटी सामग्री रंग-बिरंगे चमकदार मूल्यवान वस्त्रों एवं हारों द्वारा शोभा और बढ़ जाती है तथा इसे देखते ही बनता हैं। चिनोत मन्दिर में त्रिशूल की पूजा अर्चना पश्चात वहां उपस्थित यात्रियों और अन्य श्रद्धालुओं द्वारा आरती उतारी जाती है तत्पश्चात यदि माँ की आज्ञा हो तो ठाकुर कुलबीर सिंह जम्वाल पावन त्रिशूल को अपने सबल कंधों पर धारण कर इसे भक्तों के दर्शनार्थ मन्दिर प्रांगण में लाते हैं। जहां सभी जन त्रिशूल को नमस्कार कर माता के स्नेह में मग्न जयनाद एवं नृत्य प्रदर्शन करते हैं। इस अवसर पर लगभग प्रत्येक श्रद्धालु के नेत्रों से गंगा-जमना की धार बहती है प्रसन्नता वश। माँ की ममता एवं करूणा का यह दृष्य स्पष्ट संकेत प्रदान करता है कि माँ अपने भक्तों के संग विद्यमान रहती हैं। प्रस्थान के समय यात्रियों के आंखों में आंसों की धार को देख ऐसा प्रतीत होता है मानो कि यात्रा प्रस्थान न होकर किसी पुत्री की डोली को विदाई दी जा रही हो और यह सत्य भी है कि माँ अकसर कन्या रूप धारण किए होती है।


माता के जय घोष एवं मचेलनी की लोकप्रिय भद्रवाही, पाडरी एवं डोगरी भेंटों संग त्रिशूल को एक सुसज्जित जीप अथवा जिपसी पर आसीन कर सर्व प्रथम अग्रसर किया जाता है तथा त्रिशूल के पीछे यात्रियों से भरे यात्री वाहनों की लम्बी कतार माता के जयकारों एवं अन्य धार्मिक उपक्रमों द्वारा अनोखा समाबांधते हैं। प्रस्थान पश्चात मार्ग में स्थान-स्थान पर स्थानीय लोग मचेल यात्रा (Machail Yatra) के आगमन की प्रतीक्षा में सड़क एवं अपने घरों की छतों पर पवित्र छड़ी की पूजा अर्चना के उत्सुक रहते हैं तथा श्रद्धावश अपनी समर्थानुसार यात्रियों की सेवा में शर्बत, हल्वा-पूड़ी, चने एवं ताजे फल प्रस्तुत करते हैं।

Chinot Mandir Bhaderwah | Machail Mata Yatra


चिनोत भद्रवाह से प्रस्थान पश्चात यात्रा का भव्य एवं हार्दिक अभिनन्दन भाला बाजार में किया जाता है। यहां यात्रा को विश्राम देकर प्रवचन तथा खाद्य सामग्री द्वारा यात्रियों की सेवा की जाती है। भाला से विदा होने पर यात्रा का दूसरा मुख्य पड़ाव पुल डोडा पड़ता है जहां माँ के भक्तों की भारी भीड़ उपस्थित होती है। पुल डोडा पहुंचने पर यात्रा अर्थात मुबारक छड़ी का गर्मागर्म स्वागत होता हैं दूर-दूर के गांव से श्रद्धालू पुल डोडा पहुंचे होते हैं माता प्रति आभार एवं उसे नमन निमित । पुल डोडा बाजार को यहां के दुकानदारों द्वारा अभिनन्दन गेटों और झंडियों आदि से खूब सजाया जाता है । यात्रा के अभिनन्दनार्थ जिला विकास युक्त, डोडा एवं अन्य अधिकारी यहां उपस्थित रहते हैं। सर्व प्रथम माता के आकर्षक एवं दर्शनी त्रिशूल को बड़े आदर सहित जीप से उतार कर उस की पूजा-अर्चना के आशय से पुलडोडा के राधा कृष्ण मन्दिर में साधारण लोगों के दर्शनार्थ प्रदर्शित किया जाता हैं। पुल डोडा में दानी सज्जनों तथा स्थानीय लालों की ओर से लंगर का आयोजन होता है। यात्री यहां लंगर छकने उपरांत अपने प्रथम रात्रि पड़ाव किश्तवाड़ के लिए कूच करते हैं।


भाला एवं पुलडोडा पहुंचने पर यात्रियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो जाती हैं। लगभग 30-40 यात्री बसें यात्रा कार्रवां में शामिल हो जाती हैं। रास्ते में प्रत्येक पड़ाव पर यात्रियों की भीड़ रहती हैं। जिन यात्रियों को बस भीतर स्थान नहीं मिलता वे अपना पितृ लेकर बसों की छतों पर सवार हो जाते हैं। कभी-कभी तो भारी भीड को तथा माता प्रति लोगों की लगन देख जिला विकासयुक्त यात्रा को विदा करने प्रेम नगर तक चले आते हैं।


अब जब पुलडोडा की बात हो रही है तो पुलडोडा की विशेषता बारे भी कुछ कहना आवश्यक समझता हूँ। डोडा का भी अपना एक एतिहासिक महत्व है। सर्व प्रथम यह कि पुलडोडा दो पावन दरयाओं के संगम पर आबाद है। अर्थात ऐतिहासिक चन्द्र भागा तथा नील गंगा नारू नदी पुलडोडा के चरण पखारते हैं तथा स्थानीय लोग कुछ विशेष अवसरों एवं त्यौहारों पर यहाँ संगम के पास स्नान को पवित्र एवं शुभ मानते हैं और तीर्थ तुल्य समझते हैं।


पुलडोडा की विशेषता में यह बात भी शामिल है कि यहां सभी वर्गों के सदस्य बड़े स्नेह एवं सौहार्द भाव के स्वामी हैं। इस तथ्य का प्रमाण यहां एक ही स्थान पर मन्दिर, गुरूद्वारा एवं मस्जिद का मौजूद होना हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ बाजार के पिछवाड़े चन्द्र भागा के तट पर भगवान शिव एवं राम के पाषाण अंकित कुछ चिन्ह अर्थात आकार विद्यमान हैं। पुलडोडा से थोड़ी दूरी पर वाका शिवा स्थान पर कुछ देर पूर्व देवों के देव आद्यदेव शिव परिवार की मूर्तियाँ भी मिली हैं जिन से पुलडोडा के महत्व को चार चांद लग गए हैं। इतना ही नहीं पुलडोडा को काशीनगर की उपाधी प्राप्त है और यह ज़िला डोडा का । प्रवेश द्वार भी कहलाता हैं। पुल डोडा पश्चात मचेल यात्रा (Machail Yatra)  का भव्य एवं श्रद्धास्पद - अभिनन्दन प्रेमनगर नामी गांव के बाजार में होता है।




       To be continued……...


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