MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा || भाग-2 (Part-2)

      

Machail Yatra

                MACHAIL YATRA || मचैल यात्रा

             

            भाग-2 (Part-2)

 प्रेम नगरकि ष्तवाड़ मार्ग पर चन्द्र भागा के तट पर आबाद एक प्रेम भरा स्थान - है। यहाँ सड़क के दोनों तरफ दुकाने बनी हुई हैं तथा सामने दरयाए चिनाब के उपर से एक दर्शनीय झूला पुल भी है जिसे पार कर लोग विभिन्न क्षेत्रों की ओर अग्रसर होते हैं। प्रेम नगर तिजारत के लिहाज से एक प्रसिद्ध बाजार हैं। बाजार के ऊपर से थोड़ी चढ़ाई पश्चात आबादी ही आबादी है। यहां की जनता धर्म प्रेमी और माता के उपासकों में शामिल है। यही कारण है कि मचेल यात्रा का प्रेम नगर पहुंचने पर अद्भुत स्वागत होता है। बाजार से प्रथम एक छोटी सी पहाड़ी के भीतर छोटी सी गुफा में शिव एवं शक्ति दोनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। गुफा को मन्दिर का रूप दिया गया है और इसका श्रेय यहां मुकीम एक साधू महाराज को जाता है जिनकी प्रभु लगन और प्रयतनों कारण स्थानीय लोगों ने यहां यह मन्दिर खड़ा किया हैं।

ज्यों ही मचेल यात्रा का पावन त्रिशूल यहाँ पहुंचता है, स्थानीय । लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। बहुत दूर-दूर के गांवों से नर-नारी एवं बालक-बालिकाएं अपने रिवायती लिबास में यात्रा का स्वागत कर फल, फूल, हल्वा-पड़ी एवं चन्ने आदि यात्रियों की सेवा में प्रस्तुत कर अपनी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। मन्दिर एवं बाजार को स्वागती द्वारों तथा झंडियों से सजाया जाता हैं। मन्दिर के पास धार्मिक प्रवचन अतिरिक्त यात्रा का महत्व समझाया जाता हैं तथा प्रसाद वितरित होता है। माता के जयघोष द्वारा दरयाए चिनाब तक गूंज उठता है। श्रद्धा इतनी कि दशर्कों के नेत्रों में अश्रुओं की जल धार स्पष्ट दिखती है। सम्भवतः यही महामाई की माया और ममता है जो उस समय जाग पड़ती है।

प्रेमनगर का भी अपना इतिहास है कौरव तथा पाण्डव के समय से ही यह क्षेत्र प्रेम नाम के कारण प्रिय रहा है यही कारण है कि प्रेम नगर से थोड़ी ही दूरी पर दरयाए चिनाब के तट से सटी चट्टान तथा दरया के जल में पाण्डवों द्वारा जड़ा शिव भगवान का त्रिशुल एवं लिंग का दृष्य लुभावना है तथा यात्री अपने वाहनों को यहां विराम देकर इस सुन्दर तथा आकर्षक दृष्य को निहारते रहते हैं | प्रेम नगर से अग्रसर होने पर यात्रा को कराहड़ा के स्थान पर रोक कर स्थानीय श्रद्धालू पावन त्रिशूल के दर्शन एवं पूजा-अर्चना उपरांत यात्रियों का आदर-मान प्रसाद वितरण द्वारा करते हैं। यहां चश्मे का ठण्डा जलसेवन पश्चात यात्रा पुन्न अपने रात्रि पड़ाव किश्तवाड़ को चल पड़ती है। थोड़ी ही दूर चलने पर ठाठरी स्थान पर इसे पुन रोका जाता है । ठाठरी भी दरयाए चिनाब एवं गुन्दोह नाले का संगम अर्थात किनारे पर आबाद एक लम्बा बाजार है। यहां दरयाए चिनाब खुली जगह होने कारण अपना जल्वा यात्रियों को दिखाता है। यहां भी मचेल यात्रा के आगमनार्थ बाजार को सजाकर गुन्दोह नाले के ऊपर के निकट शिव मन्दिर के पास यात्रियों को प्रसाद के रूप में हल्वा-पूड़ी तथा चन्ने प्रस्तुत किए जाते हैं। यहां पर मुस्लिम साम्प्रदाय के सदस्य इस अवसर पर अपने बागों से लाए गए नाशपाती तथा सेब यात्रियों को बेचते हैं। स्मर्ण रहे कि ठाठरी चिनाब के उस पार बारशाला गांव पड़ता है जहां माता के एक पुलिसकर्मी सेवक श्री के.डी. शर्मा तथा उनका परिवार रहता है जो माँ के बिना नहीं रह सकते तथा प्रत्येक यात्रा पर मचेल पहुंचते हैं। स्वर्गीय श्री के.डी. शर्मा के जीवन काल में यहां चन्द्रभागा के तट पर बने डाक बंगलों के प्रांगण में धार्मिक प्रवचन तथा यात्रा बारे बखान आयोजित हुआ था। अब गत कुछ वर्षों से सुरक्षा प्रबंधों कारण ऐसा नहीं हो रहा। गर्जे कि मचेल यात्रा का कदम-कदम पर अनठा अभिनन्दन होता है।

ठाठरी पश्चात मचेल यात्रा अष्टादश भुजा श्री सर्थल वाली को नमन हेतु कान्दनी स्थान पर विश्राम करती है। यह गांव अर्थात बाजार भी चन्द्रभागा के तट पर बसा है। यहां श्री सर्थल माता को नमस्कार करने के आशय से मचेल यात्रा प्रबंधन, सर्वशक्ति सेवक संस्था की ओर से सड़क के बाई ओर माता मन्दिर का निर्माण किया गया हैं । यह मन्दिर श्री स्थल के ठीक नीचे वाका है जहां श्री स्थल की जल धारा प्रवाहित है।

कान्दनी पहुंचने पर भी यहां के दुकानदारों की ओर से यात्रियों की सेवा में प्रसाद के रूप में हल्वा-पूड़ी तथा चन्ने वितरित किए जाते हैं तथा श्री सर्थल वाली को विधिपूर्वक नमन होता है अर्थात मचेल माता के प्रिय सेवक श्री कुलबीर सिंह जी जम्वाल प्राचीन वाद्यवृन्द पर देवराग के साथ सर्थल वाली को नमस्कार करते हैं उनके पीछे सभी यात्री अपने-अपने वाहनों से निकल खड़े होकर यात्रा की सफलता के लिए अर्दास करते हैं और फिर रात्रि पड़ाव किश्तवाड़ के लिए कूच करते हैं। सर्थल वाली के चरणों में नत मस्तक होने के बाद मचेल यात्रा को रात्रि पड़ाव किश्तवाड़ से तीन किलोमीटर पीछे शालामार स्थान पर यहां के रहने वाले श्रद्धालुओं जिन में दुकानदार और डलहस्ती प्रोजेक्ट के लोग भी शामिल होते हैं-त्रिशूल की पूजा अर्चना खातिर रोक लेते हैं और यात्रियों की सेवा में प्रसाद प्रस्तुत कर अपनी आस्था और माता प्रति श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। इस स्थान, शालामार की एक और विशेषता यह है कि यहां पहुंचने पर कुछ स्थानीय छड़ियाँ जो सर्थल, कुन्तवाड़ा आदि जगहों से पधारी होती है, मचेल यात्रा के संग हो जाती है अर्थात यहां छड़ियों का सुन्दर समागम देखने को मिलता है और इस अवसर पर पुन्न माता का जय घोष गूंज उठता है। वैसे भी तो यात्री पूरे मार्ग पर अपने-अपने वाहनों में भी माता का गुण-गान करते रहते हैं तथा माता के जय कारे भरते हैं। शालामार के पश्चात मचेल यात्रा ऐतिहासिक नगर किश्तवाड़ पदार्पण करती है। यह नगर मचेल यात्रा 5 का प्रथम रात्रि पड़ाव है। किश्तवाड़ की सरजमी पर कदम रखते ही यात्रा की शोभा को चार चांद लग जाते हैं। किश्तवाड़ की धर्म परायण जनता शताब्दियों पर्यन्त देवी-देवताओं की उपासक रही हैं। मचेल यात्रा कारण समूचे ज़िला किश्तवाड़ में धार्मिक क्रांति उत्पन्न हुई है यात्रा कारण इस दूरस्थ एवं पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों में जहां एक ओर धर्म एवं उपकार की भावना उभरी है तो दूसरी ओर से सहन शीलता तथा सौहार्द का वातावरण सुदृढ़ हुआ है। यह सर्वशक्ति चण्डी महारानी का आशीर्वाद है जो लोग इस अतिआधुनिक एवं भौतिक युग में धर्मोन्मुख है अन्य था इस ओर सोचने का समय आज के मानव में कहाँ?


Post a Comment

0 Comments