मचैल माता की सम्पूर्ण कथा ( भाग-4 ) | Machail Mata History

 


या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः


            भाग-4 ( Part-4 )


तो सभी प्यारे भगतों को एक बार फिर से मेरा नमस्कार और जय माता दी । तो आज हम फिर से आपके बीच माँ मचैल वाली की सम्पूर्ण कथा का भाग-4 लेकर आएं है तो चालो शुरू करते कथा का चौथा भाग।


वर्ष 1980 से पूर्व मात्र स्थानीय श्रद्धालू माता के दर्शनार्थ एवं परदायनी के वरदान स्वरूप अपने पुत्रों के मुण्डन संस्कार के लिए मचेल माता की शरण जाया करते थे जबकि आज देश भर से श्रद्धालु मिचेल यात्रा के अवसर पर अपनी मानसिक शांति प्राप्ति हेतु नीलम घाटी मचेल पाडर पहुँचते हैं तथा माता के दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं।


मचेल ही वे पावन स्थान है यहां शिव तथा शक्ति का सुन्द समागम देखने को उपलब्ध है। जहाँ एक ओर मचेल गाँव के ऊपरी भाग पर महाराणी चण्डिका जी शोभायमान हैं वही दूसरी ओर चंडिका मन्दिर के सन्मुख वाले पर्वत पर श्री शिव भोले बाबा अपने लिंग एवं जटा-जूट दशनों द्वारा अपने यात्रियों को निहाल करते हैं । ऐसा गौरव मात्र मचेल को ही प्राप्त है जहाँ शिव और शक्ति के एवं साथ दर्शन एवं आर्शीवाद यात्रियों को प्राप्त होते हैं जभी तो बहु दूर-दूर से यात्री मचेल यात्रा गमन हेतु लालायत होते हैं तो अधीरता से यात्रा तिथि की प्रतीक्षा करते हैं।ठाकुर कुलबीर सिंह जी और मचेल माता की कथा का आरंभ कब और कैसे हुआ इस के बारे में जनते हैं।


जहाँ तक मचेल यात्रा की लोकप्रियता एवं चण्डी माता मचे का संबंध है तो इसकी लोकप्रियता एवं प्रसिद्धी का अपना एक इतिहा है। सन् 1976 की घटना है कि एक पुलिस अधिकारी (ए.एस.आई )ठाकुर कुलबीर सिंह जम्वाल सपुत्र स्वर्गीय ठाकुर राजदेव सिंह जमवाल चिनोत भद्रवाह निवासी स्थानांतरित होकर मचेल पहुँचे मचेल गांव में पुलिस चौकी चण्डी माता के मन्दिर निकट का वाकया है अब पुलिस वालों की दृष्टी हर समय मन्दिर पर पड़ती रहती है।

काफी पुराना एवं मान्यता युक्त होने कारण इस मन्दिर में माता की अपार सम्पति मौजूद है जिस में सोना, चान्दी एवं अन्य प्रकार के मूल्यवान वस्तुएं शामिल हैं, की रखवाली भी पुलिस के जिम्मे होती थी।


एक बार की घटना है कि पूर्णमाशी रात थी और समय था पिछला पहर अकस्मात मन्दिर प्रांगण प्रकाश्मान हो उठा साथ में पायल तथा मन्दिर के किवाड़ खुलने की आवाज पुलिस वालों को सुना पड़ी तो उन्होंने समझा समभवत, कोई चोर मन्दिर में घुसने का प्रयत्न कर रहा है। फलस्वरूप पुलिस कर्मियों ने गोली का प्रयोग किया रात्रि की बात थी गोली की आवाज सुनकर गांव वाले जाग पड़े तथा पुलिस चौकी की ओर दौड़े। ज्ञात हुआ कि पुलिस वालों ने गोल चलाई है तो इस पर वे सख्त नाराज हुए। जब ठाकुर कुलबीर सिंह (ए.एस.आई ) को नींद से जगाया तो उन्होंने मन्दिर के किवाड़ बंद पाए । स्थानीय लोगों ने बताया कि आज पूर्णिमा है माता का फेरा होता है तुम लोगों ने गोली का प्रयोग कर अपराध किया है । माता कूपित हो कर गांव वालों को भी और पुलिस वालों को भी सजह देगी। लोगों के कथनुसार दो पुलिस कर्मी जिन्हों ने गोली प्रयोग में लाई थी दूसरे दिन बीमार पड़ गए। इस पर ए.एस.आई. ने कहा कि यदि माता वाकय यहाँ है तो इन पुलिस कर्मियों को स्वस्थ कर दे क्योंकि इन्होंने चोर के डर से गोली चलाई न कि जान-बूझ कर। सुना है कि यह मन्नत मांगने एवं थोड़ा बहुत उपचार से सिपाही पुन्नः स्वस्थ हो गए । अब जमवाल साहिब ने मन ही मन सोचा कि आगामी पूर्णिमा की रात को मैं स्वंय पहरा दूंगा।


ठाकुर साहिब ने इनती भक्ति की कि माता उन के अंग – संग हो गई और उन की वाणी पर बैठ गई। जो कुछ वे कहते शत-प्रतिशत सच होता। परिणाम स्वरूप लोगों ने ए.एस.आई. ठाकुर कुलबीर सिंह जम्वाल को माता का संबोधन प्रदान कर दिया। अर्थात सभी श्रद्धालुओं ने उन्हे माता कहना प्रारम्भ कर दिया। उन पर माता की अपार कृपा रही। सुना है कि एक बार माता ने उन्हें स्वपन में दर्शन प्रदान कर पूछा कि वत्स मोंगो क्या चाहिए। जम्वाल के मुख से एक ही शब्द निकला सर्वत का भला माँ ऐसी शक्ति प्रदान कर कि मैं तेरे पुण्य प्रतीप से दुखी आत्माओं की सेवा कर संकू और उन के छोटे-मोटे कष्टों को दूर कर सकें । माँ ने उस की सादगी एवं परमार्थ भावना को निरख तथाअस्तु कह कर स्वंय लोप हो गई।


तब से निरंतर यह माता का सेवक दुखी लोगों की सेवा में जुटा है चाहे वे अपने घर पर हो या यात्रा में प्रत्येक स्थान पर कष्टयुक्त दुखी लोगों को माँ के नाम का जंतर (यंत्र) एवं जल से स्नान करवा कर सुख पहुंचाते हैं। इन्हें मात्र लोगों की ही चिंता है। अपने घर-बार एवं बाल बच्चों की तनिक भी परवाह नहीं। उन्हें तो माता स्वंय सम्भालेगी ऐसा उन का विश्वास तथा मान्यता है। श्री ठाकुर कुलबीर सिंह जमवाल तप और त्याग की जीती जागती मूर्त है। माता पर इतना विश्वास है कि अपनी पैतृक सम्पति तक माता के नाम कर दी ।


ठाकुर साहिब जनवरी 1976 में मचेल पहुँचे तथा मई 1978 तक वहाँ अपनी ड्यूटी दौरान खूब तपस्या एवं माँ की पूजा करते रहे। इतनी कि सिद्धि प्राप्त कर ली। वे न केवल पूजा-पाठ में व्यस्त रहे अपितु अपनी नौकरी एवं उस के प्रति कर्तव्य को भी भली भान्ति निष्ठा पूर्वक कुशलता से निभाते रहे, जभी तो उनकी पदोनति के साथ-साथ राष्टपति पदक भी प्राप्त हुआ। श्री ठाकुर इन्स्पेक्टर बन कर रिटायर हुए और तब से निरंतर लोगों की सेवार्थ अपने को अर्पित कर दिया है। रविवार के दिन प्रातः से सांय तक चिनोत मन्दिर में दुखियों की सेवा लीन रहते हैं। इतना स्टेम्ना एवं सहन शक्ति सम्भवता माता ही उन्हें प्रदान करती होगी क्योंकि साधारण व्यक्ति इतना सब्र एवं कष्ट नहीं उठा सकता। शायद यही कारण रहा होगा माता के लिए जो उन्हों ने कुलबीर सिंह के हाथों में इतना जादूभरा प्रभाव प्रदान किया कि जिसका भी उपचार करते है अथवा माँ के नाम का यंत्र देता है रोगी कष्टों से उबर आता है। यहाँ संत तुलसी दास का कथन सत्य प्रतीत होता है कि “होते आए भगवान भक्त के बस में भगवान आते हैं उन्हें बुलाने, पुकारने एवं दृढ़ निश्चय वाला व्यक्ति हो तब।

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